ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आवश्यक है स्वच्छता, समझो आज महत्व।
बच्चों जीवन में सदा, याद रखो यह तत्व॥
कचड़ा कूड़ेदान पर, इधर-उधर मत फेंक,
रोको फेंके अन्य तब, काम बहुत यह नेक॥
साफ-सफाई से रहो, सुनो लगा कर ध्यान।
दांत खूब सब माँजकर, करो नित्य फिर स्नान॥
फल-सब्जी धो कर करें, भोजन में उपयोग।
यही स्वच्छता गुण हमें, रखते सदा निरोग॥
यहाँ-वहाँ मत थूकना, कपड़े पहनो साफ।
करे गंदगी घर-सड़क, करो न उसको माफ॥
स्वच्छ छना पानी पियो, बच्चों बनो प्रबुद्ध।
बहुत लगाओ पेड़ सब, रखो श्रोत जल शुद्ध॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।