डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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आवाज़ और आगाज़ समझ, बस भारत माँ की सीमा पर
रखेंगे आन-बान-सम्मान, बस रक्षा अर्पित तन सीमा पर।
बस रोक सको तो रोक खली, देशान्त चतुर्दिक सीमा पर
अरमानों को बलिदान चरण, बस भारत माँ की सीमा पर।
हम शेषनाग बन छत्र वतन, हम शेषासन बन सीमा पर
निर्माण राष्ट्र स्वर्णिम भारत, अरुणाभ समुन्नत सीमा पर।
परवाज़ समझ आगाज शौर्य, लहराए तिरंगा सीमा पर
जय गान वीर अमरत्व सुमन, गुलज़ार वतन बल सीमा पर।
रण भेरी बजती समरांगण, राष्ट्रगान ध्वनित चहुँ सीमा पर
व्यक्तित्व दिखे पुरुषार्थ मनुज, अस्तित्व राष्ट्र जन सीमा पर।
निर्भय संबल संयम साहस, धीर विवेक सैन्य सीमा पर
बन्धुत्व बोध गुरु ज्ञान अलख, दिलदार सीख जग सीमा पर।
आतंक वाद संहार प्रथम, शंखनाद भयानक सीमा पर
अमरत्व शान सम्मान स्वयं, परमवीर धीर चहुँ सीमा पर।
हम आज अटल संकल्प विजय, गांडीव पार्थ रण सीमा पर
शत नमन धरोहर आजादी, पूर्वज शहीद जो सीमा पर।
अभिराम राष्ट्र परमार्थ काम, सुखधाम निरत बल सीमा पर।
रच स्वर्ग सुखद खुशियों से वतन, मुस्कान खिले चहुँ सीमा पर।
आगाज शक्ति नारी निर्भय, भागीदार सुता हर सीमा पर।
दीनार्त्त शमन खिलता बचपन, दीप जले जिंदगी सीमा पर॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥