डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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फिर से दूसरा ख्वाब सजाकर देखूंगी
अपनी नींदें आप उड़ाकर देखूंगी।
जिस दिन मेरी खामोशी दम तोड़ेगी,
अपना असली रूप दिखाकर देखूंगी।
दरियाओं ने मेरी कीमत कम जानी,
सेहराओं की प्यास बुझाकर देखूंगी।
दीवारें छत और न कोई दरवाज़ा,
ऐसे घर को आग लगाकर देखूंगी।
सीने पर जो बुजदिल वार न कर पाया,
उसकी जानिब पीठ घुमाकर देखूंगी।
वो आवारा बाज न आएगा लेकिन,
मैं तो मेरा फर्ज निभाकर देखूंगी।
वक्त का पहिया आज घुमाकर ‘संजीदा’,
मैं आँधी में भी दीप जलाकर देखूंगी॥