धर्मेन्द्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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मेघ, सावन और ईश्वर…
ईश्वर भक्ति है मुक्ति माया,
बंधन को जो है काटे
प्रेम, दया और सत्य को,
जीवन में सदा स्वीकारे।
असत्य को कभी ना बोले,
न स्वार्थ, न आडम्बर मान
कभी किसी को कष्ट न दे,
सुलझाए उलझे हुए काम।
मान-सम्मान, पद और माया,
ये सब करते भक्ति का ह्रास
जो जन जीते परहित कारज,
वही ईश्वर भक्त अविराम।
जो मन के दौड़े-दौड़े रहते,
नहीं मिलेंगे कभी उनको राम
रूप अनेक भले ही उनके,
साँस-साँस में बस रहे समान।
जोत जगे जब प्रेम की,
तभी दिखेंगे सबमें भगवान
मिल जाए पलभर में भी,
मन में हो श्रद्धा और विश्वास।
सत्य, करुणा, प्रेम, दया,
परहित सदा करते रहना।
न किसी पर हिंसा करना,
वो ईश्वर भक्ति अचल स्वीकार॥