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उतरी थी पटरी से रेल

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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उतरी थी कानून की, पटरी पर से रेल।
गुंडे-लुच्चे मौज में, जनता नाक नकेल॥
जनता नाक नकेल, जेल में थी मानवता।
ऐसा रहा बिहार, तभी हारी दानवता॥
खुली न्याय कानून, विकास सुशासन गठरी।
कठिनाई से रेल, चढ़ी है पटरी उतरी॥

अब विकास पथ दौड़ने, का यह आया काल।
देना जन न धकेल फिर, चल देगा पाताल॥
चल देगा पाताल, देशहित का ध्यान रखो,
जाति-पाति को छोड़, नया विकास स्वाद चखो॥
चुगे न चिड़िया खेत, उड़ा दो पहले ही सब।
पछताना क्या‌ बाद, धोखे में न आना अब॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।