दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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एक तेरे नहीं रहने से साथी लगता है,
इस जहां में अब कहीं कुछ भी नहीं है।
यूँ तो गगन में भरे पड़े हैं लाखों सितारे,
एक चंदा नहीं, तो फीके लगते हैं सारे।
आज निकला है सूरज, हुआ है उजाला,
पर आज सुनहरी भोर नहीं है शिवाला।
फूल खिले हैं चमन में अभी तो हजारों,
पर गुलाब जैसी खुशबू नहीं है ये बहारों।
आया है मधुमास खिल रहा है पलाश,
पर तेरे बिना सब लगता है उदास ही उदास।
आया है बसंत खिल रही है कलियाँ,
भाए न मन को किससे करूं गलबहियाँ।
कूक रही है आज कोयल, भँवरे गा रहे हैं,
मनाने बसंत उत्सव सब मुझे बुला रहे हैं।
मैं कैसे जाऊँ मन में लेकर के दर्द तेरा,
अब तो कोई नहीं है जो बने मेरा सहारा।
बह रही है फागुन की मस्त-मस्त बयार ,
सब कुछ सूना-सूना लगता है मेरे यार।
कैसे कटे तेरे बिन बसंत का ये मौसम,
‘दिनेश’ को चाहिए एक तेरे जैसा हमदम॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।