डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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महफ़िल में जाकर बैठे
तो शोर सुनाई आया,
झील के किनारे किसी ने
बंसी का मधुर स्वर सुनाया।
दूर से देखा तो
सब झूठ नज़र आया,
पास जाकर खोजा तो
सच्चाई का मोती पाया।
अमावस की स्याह रात के बाद
आसमां पर चाँद का प्रकाश छाया,
धीरे-धीरे उदास चेहरे पर नूर उतर आया,
रंगीन सितारों-सा झिलमिलाया।
तपती धरती और तेज धूप में
प्यासे की प्यास बुझा पाया,
बारिश की पहली फुहार और
ओस की बूँद बनकर आया।
तनाव-सी भरी ज़िंदगी में
राहत की साँस बनकर आया,
मेरी आँखों के अंदर निहारकर
दर्द को अदृष्ट कर मंद-मंद मुस्कुराया।
उम्र का फासला बहुत था लेकिन
दिलों की नजदीकियाँ नज़र आई,
परस्पर एक-दूजे को समझने से
जीवन में खुशी की लहर आई।
हज़ार चेहरों के बीच में,
एक दोस्त नज़र आया।
कुछ तो था अलग उसमें,
यूँ ही नहीं मन को भाया॥
