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एक पल में पतझड़ आ गया…

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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आतंक, विनाश और ज़िंदगी (पहलगाम हमला विशेष)…

हनीमून का ऐसा दिवास्वप्न, दिखाया था तुमने…
तुम संग यहाँ आकर, उल्लासित थी कश्मीर घूमने।

स्वर्ग-सी धरा पर फैली, हरी-भरी वादियाँ होंगी…
गगनचुंबी देवदार के पेड़ों की, सुंदर कतारें होंगी।

जहां तक नजरें जाएगी, वहीं पर ठहर जाएंगी…
कश्मीर की खूबसूरती कण-कण से बयां होगी।

चारों ओर श्वेत पर्वतों की, श्रृंखलाएं नज़ारा होंगी…
सूरज की किरणें चमकते ही, धरा झिलमिलाएगी।

प्रथम प्रेम की प्रथम सौगात, तुम्हारे कदमों में होगी…
यही तो कहा था तुमने, तुम मेरी अंकशायिनी होगी।

नई ज़िंदगी के सुनहरे स्वप्न, हम पूरे कर ही रहे थे…
जीवन से कुछ पल चुराकर, आँखों में संजो रहे थे।

सात जन्मों का तुम-सा साथी पाकर, मैं निहाल हुई थी…
किस्मत पर गर्व कर, ईश्वर का शुक्रिया कर रही थी।

हाय..आतंकी सोच ने तुम पर, अचानक वार कर दिया था
चंद पलों में हमारे स्वप्नों को जमींदोज कर दिया था।

स्तब्ध हो देवदार, शर्मिंदा खड़े आँसू बहा रहे थे स्वर्ग-सी धरा पर…
ये नारकीय कहां से आ गए थे ?

हरी-भरी वादियाँ, लाल रक्त में वीभत्स दिख रही थी…
ये अथाह खूबसूरती, मुझे पूर्णग्रहण-सी लग रही थी।

एक पल में चहकते जीवन में, पतझड़ आ गया था…
कैसा ये हनीमून, जो अमावस बन मुझ पर छा गया था…?