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एक बार फिर…

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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श्वेत श्याम जीवन के जलधर,
मन में मेरे विचर रहे हैं
दुआ बसी मेरी अँखियन में,
भीगी पलकें कुछ खोज रहे हैं।

आज एक बार फिर ख़ाली,,
एयरपोर्ट से लौट के आए
आज एक बार फिर मुझको,
बीते समय ने चित्र दिखाए।

सदा हौंसला उनको देकर,
उड़ने को तैयार किया
जब अवसर आया उड़ने का,
मन में क्यों अफ़सोस किया।

सूना कमरा, सूना बिस्तर,
जैसे मुझे चिढ़ाता कोई
बिखरी-बिखरी मैं लगती हूँ,
फिर मुझको समझाता कोई।

उन्नति बच्चों की मन भाती,
उनकी दूरी नहीं सोहाती
ऐसा ही होता आया है,
मैं अपने मन को समझाती।

क्रम इतिहास का देख रही हूँ,
धीरे-धीरे समझ रही हूँ
लेकिन पोती अधिक है प्यारी,
सबकी धड़कन बड़ी दुलारी।

ब्याज मूल से अधिक है प्यारा,
पोती सबकी आँख का तारा।
घर की आन-मान है बेटी,
मात-पिता की शान है बेटी॥