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ऐसी चोट जरूरी है…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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मार देता मैं भी,
वहाँ चोट
उस कील पर,
पर मैं इतना कर
ना सका,
लोगों ने मुझसे कहा-
ऐसी चोट जरूरी है।

जमाने में बहुत,
लोग ऐसे हैं
जो सीधी बात
नहीं समझते हैं,
इसी लिए उन पर
ऐसी चोट जरूरी है।

शहर हो गाँव हो,
मतलबी लोग मिल
ही जातें हैं
उनके मुँह में राम,
और बगल में छुरी होती है
देखो भाई,
जब जनता ही गहरी नींद में
सो रही हो,
तो ऐसी चोट जरूरी है।

कील डर रही है,
टेढ़ी-मेढ़ी हो रही है
बचते-बचाते सिर को,
झुकाते डर कर रो रही है
वहाँ चोट से,
पर वह नासमझ नहीं जानती है
ऐसी चोट जरूरी है।

आज-कल तो यही
हो रहा है,
ईमानदार रो रहा है
झूठ बोलने वाला,
आराम से सो रहा है।
ऐसे लोगों को सबक
तो सिखाना चहिए,
तभी तो ऐसी चोट जरूरी है॥