प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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ओ मानुष ! काहे ? फिरे मारा-मारा,
ये संसार चार दिनों को ही है तुम्हारा।
माया जाल में फंसकर,
भूल न जाना प्रभु को
सुमिरन में समय खर्च,
घूम ना बंजारा।
पैसों में रमो नहीं ,
भोग में भी रमो नहीं
प्रभु-प्रेम रम जाओ,
मत बनो आवारा।
मन से सब बंधन हैं,
मन से ही छूट जाएँ
प्रभु-प्रीत जो बंधे,
ना ढूंढे वो सहारा।
धोबी का कपड़ा बन,
रंग मत तू जग रंग में
प्रभु रंग में ही रंग तू,
पक्का वो प्यारा।
विवेक और वैराग्य,
हल्दी सा अंग लगा
प्रभु नाम से सजा ले,
तन मन ये सारा।
ओ मानुष ! काहे ? फिरे मारा-मारा,
ये संसार चार दिनों को ही है तुम्हारा॥