सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**********************************
नव उमंग उत्साह लिए
साजन को साथ लिए
फूलों की घाटियों में,
केसर की क्यारियों में
एक नवविवाहिता चली आयी थी,
साथ पाकर पी का फूली नहीं समाई थी।
लाल सिंदूर भरा माँग में,
शादी के चूड़े थे हाथ में
इठलाती बलखाती-सी,
कुछ-कुछ शरमाती-सी
बर्फीली वादियों में घूमने आयी थी,
पी की बाँहों में सिमटने चली आयी थी।
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी,
कूद पड़े थे कुछ व्यभिचारी
‘राक्षस’ कहें या ‘असुर’ नाम दें,
गोली की बारिश की भारी
जहाँ महकती थी फुलवारी,
लाशों से क्यारी भर दिया
‘जाति-धर्म’ पूछ-पूछ वह स्थान रक्त रंजित कर दिया।
जब तक कुछ कहती-सुनती,
विदा का क्षण विलखे जिया
सिंदूर तड़प कर बोला-
हाय मैं किसे कहूँ पिया,
नैना बादल, गुमसुम मधुबन
फुलवारी आबाद नहीं,
स्वप्न हैं टूटे, चाँद है रूठा
खिलती कोई कली नहीं।
कितने बेघर हुए, अपनों को खोया,
कितनों की बद्दुआ लगेगी ज़हर है बोया
तूने सिंदूर जो बहन-बेटी का चुराया है,
मोल हमको अभी उसका चुकाना है।
कर लिया खूब गुनाहों का तांडव तुमने,
मोड़ कर गर्दन तेरी कदमों में झुकाना है॥