राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
*******************************************
एक कबूतर दो कबूतर,
गर्मी से अकुलाएं कबूतर
धीरे-धीरे देखो कितने,
छत पर मेरी आएं कबूतर।
करें गूंटर गूं घूम-घूम,
कुड़ी में नहाए झूम-झूम
पानी चोंच से पीएं चूम,
प्यास बुझा उड़ जाएं कबूतर।
जरा-सी आहट से डर जाते,
हाथ किसी के ये न आते
हिल-मिल कर हैं दाना खाते,
सबके मन को भाएं कबूतर।
चोट किसी को ना पहुंचाएं,
भोला-भाला जीव कहाएं।
मक्का-ज्वार-बाजरा खाएं,
शाकाहारी कहलाएं कबूतर॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।