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करती शुभ का चयन

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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करती स्वयं को शिव को समर्पित करती उनका आराधन,
माया के प्रहार से बच कर करती अपने शुभ का चयन।

सब संभाल लेंगे शिव-शंभो उनके भरोसे मैं और जग,
स्थिर मन ले ली शरणागति रहूं सदा अब शिव की शरन।

उनकी शरन में गई हूँ जब से भोग- कर्म बंधन छूटा,
शिव-सुंदर का सहारा प्यारा अब तो लूंगी जनम-जनम।

योग बनाती उनसे मिलन का होगा रे संजोग कभी,
शिव प्रशांत सम बन के नदिया धोती हूँ स्वामी के चरन।

सब जग प्रियता मात्र जनम की तुमसे है संबंध पुराना,
प्रेम के सागर, मन की गागर, भरते हो तुम प्रेम-रतन।

मुझे कोई अप्रिय नहीं है ना ही कोई प्रिय सगा,
मेरे शिव अपनापन तुमसे आके बंधो भक्ति-बंधन।

जग के लिए मन की व्याकुलता था मूरखपन-पागलपन,
भावों का गंगा-जल छिड़कूँ संग नेत्र भर जल-अंसुवन।

मुख से हृदय में बात समायी, तुम ही एक मेरे हो बस,
हुई चमत्कृत लगा के लौ को अपना के भक्ति-साधन।

मौत से कोई बच ना पाया जीऊं जनम भर तुमरे लिए,
जो भी बिताया बिना तुम्हारे कटे- मिटे वो पृष्ठ जीवन।

जनमों-जनम की ठोकर खा के तुम तक पहुँची हूँ मैं अब,
किया त्यक्त तृण‌ भर की आड़ को आ के बचा लो प्रभु पावन।

हुई पराजय चहुं और तब तुमको पुकारा मन-मंदिर,
मैं हूँ बाती, तुम हो दीप शिव ! पूजूं तेर डार अंसुवन।

शुक्राचार्य हैं कदम-कदम पर जो दैत्यों को देते बल,
मेरा बल-संबल तुम हो शिव! रिपु-दल शक्ति हो मारन।

तुममें जीवन-मरण समाहित तरुण तुम्हीं तारक तन के,
जग है नश्वर तुम ही अमर हो, लिपटूं अमर-बेलिका बन।

ऐसा कोई जप-तप न जग में, जो शिव को अधीन कर ले,
‘शिवदासी वंदना’ संग अर्पित करती प्रीति-भक्ति चंदन।

करती स्वयं को शिव को समर्पित करती उनका आराधन।
माया के प्रहार से बच कर करती अपने शुभ का चयन॥