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करो प्रतीक्षा धीर-वीर बन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मूल प्रतीक्षा जीवन सुन्दर,
सफल सुखद अरमान हृदय हो।
आनन्दित पुरुषार्थ सबल मन,
मिले कीर्ति सम्मान विजय हो।

करें प्रतीक्षा संयम सत्पथ,
दशा दिशा अनुकूल जभी हो।
तब तक जीएँ शान्ति धीर मन,
समय चले प्रतिकूल मनुज हो।

अन्धकार फैले हों चहुँ दिक्,
रोग शोक अनुताप बहुल हो।
करें प्रतीक्षा नित सूर्योदय,
आगत शुभ अभिलाष सृजित हो।

सभी योजना बनती जनहित,
बिना जाति अरु धर्म निहित हो।
युवा जरा नारी नर बालक,
लाभान्वित सद्कर्म पथिक हो।

करो प्रतीक्षा धीर-वीर बन,
सरकारों को वक्त सदा दो।
सर्व प्रगति में साथ बनें हम,
हर सपना साकार सुभग हो।

सदा प्रतीक्षा कर समय चक्र ,
रच साँचा शुभकाम उदय हो।
कुम्भकार बन वक्त चाक पर,
गढ़ सुपात्र अभिराम अभय हो।

करें प्रतीक्षा नित मति विवेक,
दशा दिशा अनुकूल सहज हो।
तब तक जीएँ परसेवा रत,
चाहे वक्त प्रतिकूल विकट हो।

बहुत प्रतीक्षा की सबने अब,
आओ मेरे राम मुदित हो।
कोराना रावण दैत्य विकट,
हरो शत्रु फिर,रामराज्य हो।

करो प्रतीक्षा सफल ध्येय नित,
बढ़ो ध्येय मनयोग कर्म हो।
चलो साथ मिल देश प्रगति पथ,
कर विकास चहुं क्षमा धर्म हो।

समय वेग गतिशील पवन सम,
समझ समय अस्तित्व सही हो।
बिना प्रतीक्षा कर्म मनुज रत,
सत्य कीर्ति व्यक्तित्व सृजित हो।

प्रतीक्षा पल प्रतीति असहज,
हेतु प्रियम मनुहार विरह हो।
प्रीत मीत सम्बन्ध सकल जग,
मिलन नवल सुख सार मनुज हो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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