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कलम की अभिव्यक्ति

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जो कुछ भी मैं कहना चाहूँ ये कलम मेरी कह जाती है,
चल पड़ती दिल के काग़ज़ पर मन भावों को दर्शाती है।

दिल में खुशियाँ हैं ग़म भी हैं ख़ामोश जुबाँ रहती मेरी,
जब होता नहीं सहन मुझसे लग जाती है दु:ख की ढेरी।
मैं नहीं चाहता कहूँ मगर आँखें ही राह बनाती हैं,
चल पड़ती दिल के काग़ज़ पर मन भावों को दर्शाती हैं…॥

आँसू स्याही बन जाते हैं दिल कोरा कागज़ है मेरा,
बन करके हर्फ़ उभर आते बन कर जज़्बातों का डेरा।
मन की पीड़ा रुकती ही नहीं वो नदिया-सी बह जाती है,
चल पड़ती दिल के कागज़ पर मन भावों को दर्शाती हैं…॥

दुनिया में बिखरा दर्द बहुत महसूस सभी ये करती है,
बहते जाते आँसू बन कर वो शब्द जिन्हें ये लिखती है।
ये कड़वा ज़हर जुबानों का ख़ामोशी से पी जाती है,
चल पड़ती दिल के कागज़ पर मन भावों को दर्शाती है…॥

लेकिन बेबाक बहुत है ये डर इसे नहीं है शाहों का,
कर देती पर्दाफ़ाश सभी काली अंधियारी राहों का।
हैं शांति क्रांति की द्योतक ये सोतों को सदा जगाती है,
चल पड़ती दिल के काग़ज़ पर मन भावों को दर्शाती है…॥

छोटी-सी दिखती कलम मगर ये काम करें शमशीरों का,
शाहों के तख़्त हिला देती दे बदल हाल तकदीरों का।
पल में तोला-माशा कर ये अपना कमाल दिखलाती है,
चल पड़ती दिल के काग़ज़ पर मन भावों को दर्शाती है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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