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‘कला’ सशक्त माध्यम है दुनिया को खूबसूरत बनाने का

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘विश्व कला दिवस’ (१५ अप्रैल) विशेष…

कला जीवन को रचनात्मक, सृजनात्मक, नवीन और आनंदमय बनाने की साधना है। कला के बिना जीवन का आनंद फीका-अधूरा है। कला केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है, जिसे कोई बनाता है; बल्कि यह एक भावना है जो कलाकारों और उन लोगों को खुशी व आनंद देती है, जो इसकी गहराई को समझते हैं। कला अति सूक्ष्म, संवेदनशील और कोमल है, जो अपनी गति के साथ मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती है। हम जो कुछ भी करते हैं, उसके पीछे एक कला छिपी होती है। कला का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व है। इसी महत्व के लिए ‘विश्व कला दिवस’ विभिन्न कलाओं का एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव है, जिसे दुनिया भर में रचनात्मक गतिविधि के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कला संघ (आईएए) द्वारा घोषित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय कला संघ की आम सभा में १५ अप्रैल को इस दिवस को घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसका पहला समारोह २०१२ में किया गया।

दुनियाभर के कलाकारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण दिन है, जिसका मुख्य उद्देश्य कलाकारों और कला को सुरक्षित, संरक्षित एवं सवंर्धित करना तथा अपनी बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और नवाचार को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है। कला दिवस विश्व में विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। कलाकार कविता, चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य, संगीत जैसे विभिन्न भौतिक साधनों से अपने विचारों, रचनात्मकता, ज्ञान, भावनाओं और कल्पना का आदान-प्रदान करते हैं। यह दिन हमें अपने आस-पास की प्रकृति में गोता लगाने, उसकी सुंदरता का निरीक्षण करने और अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने को प्रेरित करता है। इसके माध्यम से जीवन की खूबसूरती को उकेरने एवं मोहक दुनिया का सृजन करने का प्रयत्न किया जाता है।
कला दिवस की तारीख लियोनार्डाे दा विंची के जन्मदिन के सम्मान में तय की गई थी, जो इटली के महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, अभियंता और वैज्ञानिक थे। दा विंची को विश्व शांति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सहिष्णुता, भाईचारे और बहुसंस्कृतिवाद के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में कला के महत्व के प्रतीक के रूप में चुना गया था।
रंगों और आकृतियों के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए, कला जीवन के सार को पकड़ती है, भावनाओं को जगाती है और शब्दों के बिना भी संबंध को बढ़ावा देती है। विंची एक महान कलाकार थे। उन्होंने कई ऐसी पेंटिंग बनाई हैं, जो विश्वभर में प्रसिद्ध हुई हैं। इन सबमें ‘मोना लिसा’ की पेंटिंग के बारे में बच्चे-बच्चे को पता है, लेकिन, विंची ने मोना लिसा के अलावा भी कई विख्यात पेंटिंग बनाई हैं। उनकी बनाई पेंटिंग्स दुनियाभर के संग्रहा लय में देखने हर साल कई लाख लोग आते हैं।
दुनिया में कला के विविध रंग बिखरे हैं। संगीत भी कला का माध्यम है, जो शांति, सुकून एवं आनन्द प्रदत्त कर सकता है। संगीत अमूर्त कला है, पर उसमें निहित शांति, सौन्दर्य एवं संतुलन की अनुभूति विरल है। संगीत अशांति के अंधेरों में शांति का उजाला है। यह अंतर्मन की संवेदनाओं में स्वरों का ओज है। शादी में ढोलक-शहनाई, भजन-मंडली में ढोल-मंजीरा, शास्त्रीय संगीत में तानपुरा, तबला, सरोद, सारंगी का हम सब भरपूर आनंद उठाते हैं, ये कला के बेजोड़ नमूने है। भारत में संगीत का हजारों वर्षों का इतिहास है, शास्त्रीय संगीत आदि काल से है। संगीत के आदि स्रोत भगवान शंकर हैं। उनके डमरू तथा श्रीकृष्ण की बाँसुरी से संगीत के सुर निकले हैं। किंवदन्ति है कि संगीत की रचना ब्रह्माजी ने की थी। सूरदास की पदावली, तुलसीदास की चौपाई, मीरा के भजन, कबीर के दोहे, संत नामदेव की सिखानियाँ, संगीत सम्राट तानसेन, बैजु बाबरा, कवि रहीम, संत रैदास भक्ति संगीत एवं साहित्य विलक्षण उदाहरण हैं।
कठपुतली भी कला का ही एक नमूना है। पुतली कला कई कलाओं का मिश्रण है, जिसमें-लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि है।
भारत में प्राचीन समय से नृत्य की समृद्ध परम्परा चली आ रही है। नृत्य के अनेक प्रकारों में कथकली प्रमुख है, मोहिनीअट्टम नृत्य भी केरल राज्य का है। मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है। ओडिसी ओडिशा राज्य का प्रमुख नृत्य है, जो भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति आंध्रप्रदेश में हुई, इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है।
सब लोग किसी न किसी कला में उस्ताद ज़रूर होते हैं। जैसे-लेखक, कवि, नाटककार, संगीतज्ञ, गीतकार, नृत्यकार आदि। आज के युवा बहुत-सी कलाओं को दुनिया के सामने ला रहे हैं, जो सबको अचंभे में डाल देती है। दुनियाभर की इन्हीं कलाओं को बढ़ावा देने और जो लोग कला का महत्व नहीं समझते, उन्हें कला के अलग-अलग रूपों से मिलवाने के लिए ही कला दिवस मनाया जाता है।