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कल भोर भी होगी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आज रात तो है क्या, कल भोर भी होगी,
आज घात तो है क्या, कल सौगात भी होगी।

वक्त के थपेड़ों से घायल, जज़्बात भी होंगे,
अपनों के जख्मों से क्या, पहचान भी होगी।

गमों से भीगे दिलों में, आफ़ताब भी होगा,
वक्त के साथ आईने में, पर्दाफ़ाश भी होगा।

बाधाओं की सरजमीं, पथ नायाब भी होगा,
तूफ़ानी आपदाओं में नयी राहें भी खुलेंगी।

रिश्तों के खंडहर में कयामतें भी होंगी,
परायों में अपनेपन का अहसास भी होगा।

इबादत की इमारत में उपहास भी होगा,
चाहत की विषम राहों में घबराहट भी होगी।

मुश्किलों की दुनिया में शराफ़त भी होगी,
सफ़र छंटेंगी काली घटा, नई भोर भी होगी।

बिखरेगी अरुणिम किरण, प्रगति चहुँ ओर भी होंगी,
सजेगा फिर से गुलिस्तां, खूबसूरत खुशियाँ भी होगी।

मिटेगी उदासी होंठों की, मुस्कानें भी खिलेंगी,
फिर से चूमेगी सफलता, बरकतें आम भी होगी।

नज़ाकत भी नज़रानों में, तब्दीलियाँ भी होंगी,
मुहब्बत के आशियाने, दिल गुल्फ़ाम भी होगा।

बस यकीनन ख़ुद यकीं हो, फिर नया सबेरा होगा,
खिलेगी कुदरत बागवां, संजीवन सहारा होगा।

महकेगी चारों दिशा-ओ-दशाएँ, दिलबाग भी होगा,
अमन चैन इन्साफ़ भी, आपसी सहभाग भी होगा।

आज रात तो है क्या, कल तरन्नुम भोर भी होगी,
सच्चाई की रोशनी में, आपदा कमज़ोर भी होंगी॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥