हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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टूटते हैं सपने,
ना जाने कहाँ चले जाते हैं अपने
रोते हैं हम दिन-रात,
फिर भी नहीं आते हैं अपने।
हर चेहरे पर नजरों की चाह ढूंढते हैं,
तेरी यादों के सहारे कब तक! इंतजार करें हम,
फिर भी नहीं आते हैं अपने।
उम्मीदें बहुत सारी थी,
पर हर किसी के चाहने से क्या होता है
वही होता जो ऊपर वाला करता है,
फिर भी नहीं आते हैं अपने।
मंज़िल अब दूर हो गई है,
तेरी तलाश अब भी जारी है।
राह देखते हैं हम,
फिर भी नहीं आते हैं अपने॥