ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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शुभ-लाभ बुद्धि के प्रदाता को,
क्यों ‘गोबर गणेशन’ कहते हैं ?
मूर्खता से इन्हें किसने जोड़ा ?
हम उनकी मजम्मत करते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति,
पहुंच चुकी थी हर गली-द्वारे
विस्तार दिया एक परम्परा,
गणेश विराजने चौक-चौबारे।
इसी बहाने क्रांतिकारी जन,
एक स्थान पर एकत्रित होते
परतंत्रता की जड़ें काटने,
स्वतंत्रता का पौधा बोते।
हर हिंदू घर गोबर मृदा से,
परतंत्रता पूर्व भाद्र चतुर्थी
छोटी पारंपरिक पूज्य श्री
बनती गणपति की मंगल मूर्ति।
दस दिवस की पूजा पश्चात,
इनका ही होता था विसर्जन
लेकिन अब भारी विशालकाय
प्लास्टर पेरिस से करते सृजन।
जो पानी में घुलता भी नहीं,
बिखरे रहते अंश इधर-उधर
दुखता श्रद्धा मन देख के यह,
पेरिस मूर्ति न बना बड़ी ठहर।
गोबर सद्य का जीवाणु नाशक,
होता यह है सबको ही विदित
कच्ची भू लीपते थे इससे,
गोबर प्राकृतिक और पवित्र।
बनता ईंधन सूख कर गोबर,
खेतों में मिल खाद उपजाऊ।
गोबर को कहें आज घिनौना,
गौ माँ को बनाकर अब ‘काऊ॥’
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।