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काश! झूलते साथ में

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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टूट गई हूँ सजन मैं, इन्तजार दिन- रात।
भींगी तन-मन बालमा, मत खेलो जज्बात॥

सावन बीता जा रहा, सजन विरह अति घोर।
आ जा साजन बालमा, मत रूठो चितचोर॥

सखियों को जब देखती, झूला बैठे नैन।
काश! झूलते साथ में, मिले विरह मन चैन॥

बेदर्दी तुम साजना, भूल गये रतिराग।
सूना है झूला पड़ा, दिल में जलती आग॥

देखो सावन कशिश दिल, दिल धड़कन उत्पात।
बूँद-बूँद तनु शूल बन, करे प्रीति आघात॥

समझो सजनी दिल व्यथा, पड़ी वियोगी फॉंस।
बाट जोहती साजना, तड़प रही अहसास॥

निशिवासर बस देखती, स्वप्न मिलन मनमीत।
सावन मनभावन सरस, उकसाती बस प्रीत॥

दो जीवन रस श्रावणी, हमदम भरो मिठास।
सुनो दर्द हियतल प्रिया, रखो लाज विश्वास॥

करो प्रेम गुलशन प्रियम, भीगें हम बरसात।
एकसाथ झूला झुलें, खेलो मत जज़्बात॥

बादुर लखि दु:ख विरहिणी, उड़ा रहा उपहास।
बनो सखे संजीवनी, बस तुम दिलवर आस॥

मैं तेरी जीवन कला, साजन तुम श्रृंगार।
मधुशाला मैं सावनी, तुम जीवन उपहार॥

बूँद-बूँद जल टीस दे, आलिंगन उसकात।
मधु सावन आओ सजन, मिले प्रीत मन गात॥

आ जाओ अब साजना, चलें चमन धर हाथ।
मिलकर हम सावन सजन, झूलें झूला साथ॥

रिमझिम सावन नभ घटा, देख बूँद मुस्कान।
देख नशीले नैन को, तड़प रही अपमान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥