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किताबों संग रंग जाते थे…

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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क्या सबसे अच्छी दोस्त…? (‘विश्व पुस्तक दिवस’ विशेष)…

खोए-खोए से ख्वाबों में,
हम दो दुनिया में जीते थे
सुंदर पल, प्यारे बचपन में,
पुस्तकों से चुराया करते थे।

चम्पक, बिल्लू, चाचा चौधरी,
ज़िंदगी का हिस्सा लगती थी
सरिता, मुक्ता, मनोहर कहानियाँ,
मनभावन किस्सा लगती थी।

दिनचर्या से समय चुराकर,
पुस्तकालय घूम आते थे
बचपन के कोरे से दिन,
किताबों संग रंग जाते थे।

धीरे से जब हुई पदोन्नति,
उपन्यास में जान बसने लगी
गुलशन नंदा, मनोज, वेद की,
किताबें बहुत मशहूर हुई।

कुछ नाम भुलाए न भूलें,
सु.मो.पा., प्रेमचंद, शिवानी का
आज भी जब-तब वक़्त मिले,
छोड़ न पाती चस्का पढ़ने का।

प्रिय दोस्त बन गई किताबें,
पाकर ज्ञान जीवन को जाना
पढ़ी व्यवहार की अनेक बातें,
समझा दुनिया का कोना-कोना।

शब्दों का समंदर पढ़कर,
अलंकार का रुतबा सीखा
इन्हें मिलाकर वाक्य बनाकर,
लिखने का एक सपना देखा।

महादेवी, मन्नू भंडारी के,
समकक्ष तो न जा पाऊंगी।
हृदय स्पर्शी कथाएं रचकर,
मैं अपना मन भर जाऊंगी॥