कुल पृष्ठ दर्शन :

You are currently viewing किराए का घर

किराए का घर

हिमांशु हाड़गे
बालाघाट (मध्यप्रदेश)
****************************************

अंतिम कविता किराए के घर से,
किराए का मकान सिर्फ मकान नहीं था
घर था, जहां बसी बहुत सी यादें,
यादों के समंदर में खो जाने का मन
कमरों से बहुत-सी गुम हुई चीजें मिलने की खुशी।

कुछ चीजें खो गईं, कुछ मिल गईं,
यादों में बसा, वो शयन कक्ष जहां…
दिनभर की थकान को रात्रि के समय,
मस्त आराम करता हुआ मैं।

सुबह-सुबह जो खूबसूरत सी चिड़िया खिड़की पर खड़ी,
किराए के मकान की नींद, नए मकान से गायब हो गई,
एक अस्थायी-सी खुशी, अब नहीं रही
नए घर की दीवारें, नए फर्श की खुशबू,
लेकिन नींद की कमी, अब भी महसूस होती है।

किराए के घर में, एक अनोखी-सी नींद आती थी,
जो अब नए घर में, नहीं आती है
नए घर की खिड़कियों से, सूरज की किरणें आती हैं,
लेकिन नींद की कमी, अब भी बनी रहती है।

काश! किराए के घर की नींद, नए घर में भी आ जाए,
और मैं चैन की नींद सो सकूँ, बिना किसी चिंता के
लेकिन शायद यही जीवन है, जिसमें बदलाव आते रहते हैं,
और हमें नए अनुभवों के साथ जीना पड़ता है।

सो जाओ रात हो गई,
कविताओं की किताब भी कहीं खो गई।
सुबह जागते हुए लगता है कि ये मैं कहाँ आ गया!
जीवन चक्र इस प्रकार चलता रहता है।
जिस प्रकार जीवन की रूपरेखा गढ़ी जाती है,
अंतिम कविता किराए के घर से…॥