सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मधुर कुछ याद बचपन की,
जो चितवन पर अभी तक है
चलो बीते सुनहरे पल,
वो हम फिर याद करते हैं।
सुनहरे और सलोने दिन,
नहीं आएँगे फिर अब जो
उन्हीं को याद करके हम,
ख़ुशी सब बाँट लेते हैं।
वो पेड़ों पर पड़े झूले,
थे ऊँची पेंग हम भरते
कभी राधा कभी कृष्णा,
हम मुरली थाम लेते थे।
पकड़ना बाग़ में तितली,
उड़ाना फूँक कर उसको
तोड़कर बाग से अमरूद,
हम कहीं भाग जाते थे।
बना काग़ज़ की कश्ती को,
तैराते थे हम पानी में
जिधर को नाव जाती थी,
उधर ही घूम जाते थे।
गर्मी की दोपहरी में,
दबे पाँवों निकल जाना
बीनते आम बगिया में,
रात को डाँट खाते थे।
घरौंदे गुड्डे-गुड़ियों के,
बनाते थे दिवाली में
सजाते थे उसे जी भर,
रंगोली हम बनाते थे।
न कोई छल-छलावा था,
न कोई भी दिखावा था।
बड़े मासूम थे हम सब,
ख़ुशी-ग़म बाँट लेते थे॥