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कुछ रूमानी, कुछ सुहानी

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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ठंड की तासीर धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। पारा दिन-ब-दिन लुढकता ही जा रहा है। सुबह-शाम ठंड की चुभन बढ़कर रजाई लपेटने की चाह बढ़ती जा रही है। शहर की चारदिवारी से निकलकर इन दिनों मैं गाँव की ठंड महसूस कर रहा हूँ। बड़ा मजेदार अनुभव है-दिन में चमचमाती गुनगुनी-सी धूप है। हवा के ठंडे झोंकों में गुनगुनी धूप की गर्माहट बड़ा सुकून दे रही है। शाम ढलते ही अलाव सुलगने लगे हैं और अलाव तापते किसान अलाव को घेरकर लंबी-चौड़ी बातें हांक रहे हैं। वाह ! क्या गर्मजोशी है इन लोगों की बातों में ! एक-से-एक मसालेदार बातें, बीच में चुटकुले और खेत की रसीली बातें। अलाव की लपटें देख बीच में ही कोई शरारती आदमी टपक जाता है और फिर शुरू होते है हँसगुल्ले। फिर पूरे गाँव की सुनवाई शुरू हो जाती- किसके यहाँ क्या चल रहा है, किसकी छोरी का किसके साथ कैसा चक्कर चल रहा है… से लेकर सरपंच की कहाँ गलती हो रही है, मुख्यमंत्री को क्या करना चाहिए और प्रधानमंत्री कहाँ गलती कर बैठते हैं… आदि-आदि तक एक-से-एक रसीली बातें…। बस अलाव में एक-एक लकड़ी डालते रहो और चटखारे लेते रहो, बड़ा मजा आता है।
अलाव की उठती लपटों के साथ रात चढ़ने लगती है। तेज होती ठंड के नुकीले झोंके सबको और नजदीक सिमटवा देते हैं। तारों से भरा आसमाँ नजरों में भरने लगता है और अचानक कोई तारा टूटकर नजदीक ही कहीं गिरता है। फिर अपने-अपने कयास, कल ऐसा ही हुआ। दूर आसमान से एक तेजपुंज तारा टूटकर हम जहाँ अलाव ताप रहे थे, उसके बिल्कुल पास ही बहती नदी के पात्र में गिरा। थोड़ी देर तो एकदम सन्नाटा, सबने अपने- अपने को टटोल लिया, किसी को कुछ नहीं हुआ है, यह यकीन होने के बाद फिर मत पूछो एक से एक बड़े खगोलशास्त्र के ज्ञाता अपनी ऐसी डींगे मारने लगे, कि बस सुनते जाओ। एक तारा क्या टूटा, बातों के जैसे अम्बार बरसने लगे। मेरे पड़ोस में बैठे कुछ बुजुर्ग से व्यक्ति अचानक बोले, “अरे! भैया बहुत सुन ली तुम्हारी, अब मेरी सुनो यार। एक बार हम ऐसे ही अलाव ताप रहे थे और अचानक धड़ाम से आवाज हुई, अरे वो क्या कहते वो ‘धूमकेतु’ कि क्या… वो है ना सीधे मेरे अंदर आ घुसा और मत पूछो, तबसे मुझे क्या-क्या होने लगा।”
हा हा हा हा… सब हँसने लगे। पचासों, एक-से-एक लच्छेदार बातें, कुछ रूमानी कुछ सुहानी। कुल मिला क़े अलाव तापना मेरा हमेशा का बड़ा मनोरंजक अनुभव रहा है और अलाव तापते-तापते मेरे ज्ञान में जो वृद्धि हुई है, वो मुझे किसी सत्संग से भी ज्यादा लगती रही है। उस ज्ञान की तपिश कई दिनों तक मेरी खलबली उड़ाती आयी है।
अब काफी रात हो चली है। अलाव की लपटें कम हो चली है। धीरे-धीरे एक-एक आदमी उठकर जाने लगा है। अलाव की आग तो बुझ गयी, लेकिन कुछ बातों की आग दिमाग में जल उठी है। अब कल के अलाव का इंतजार है।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।