हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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आते हैं जीवन कोरे यहाँ, फिर माँ-बाप, गुरु की धार मिलती है
जो ढलता है सही सांचे में इनके,
जिंदगी उसी की ही फूल-सी खिलती है।
टूटती है महज शाख पेड़ से,
पर दर्द दोनों को बराबर करता है
बन नहीं सकता मूर्ति वह पत्थर,
छैनी-हथौड़े की चोट से जो डरता है।
खाता है जीवन लाख थपेड़े यहाँ,
अपनों-परायों का साथ खोता है
लगते हैं मोती हाथ उसी के ही, जो,
लगाता जीवन के सागर में गहरा गोता है।
बोलती है कोयल अपनी बोली,
उसका सब कुछ स्वतंत्र होता है
दूसरों की जुबान बोलने वाला तोता,
हमेशा पिंजरे में ही बंद होता है।
देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं,
जीत हमेशा सत्य की ही होती है
उगाती है फसल जमीन वही सिर्फ,
जो किसान ने अपने हल से जोती है।
टिकती नहीं है झूठ की कोठियाँ यहाँ,
वे रेत के घरौंदों की तरह बह जाती है।
लाख आँधी-तूफान आने पर भी यहाँ,
सच की इमारतें खड़ी ही रह जाती है॥