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कुदरत की पवित्रता

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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जल ही कल….

जल ही जीवन है समझें,
या जल ही कल, कह लें
बड़ा महत्व है जल का,
संकट से पहले समझ लें।

हरी-भरी अपनी वसुंधरा है,
ये जल की जादूगरी है
गंगा-यमुना समुद्र-जल की,
निर्मल धारा बह रही है।

बड़े-बड़े उधोग-धंधे और,
ये ऊँची-ऊँची इमारतें
जल बिना सम्भव नहीं,
बड़ी-बड़ी अपनी चाहतें।

माना विकास जरुरी है,
हो रहा प्रतिकूल असर
जल संरक्षण जरूरी है,
करनी होगी हमें फिकर।

जल बिना सुन्दर प्रकृति,
की कल्पना ही है बेजान
वक्त रहते संभल जाएं,
कर लें इसका समाधान।

आने वाला कल हो बेहतर,
इस पर चिंतन-मनन करें
जल की बूँद-बूँद अमृत है,
इसका हम संरक्षण करें।

सृष्टि का सौंदर्य चाहिए तो,
वैदिक युग लौटना होगा
बात थोड़ी कड़वी होगी पर,
मन पर संयम रखना होगा।

कुदरत की इस पवित्रता को,
हम मिलकर रखें बरकरार
ऋषि-मुनियों की धरोहरें,
हो ना जाए कहीं बेजार।

जीवन में खुशहाली आए,
बहती रहे निर्मल जलधारा।
ना करें बर्बादी जल की,
मूलमंत्र हो अपना नारा॥