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कृष्ण-लीला

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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धर्म,नीति का सार थे,राधा के गोपाल।
उनके कारण धन्य है,द्वापर का वह काल॥

बचपन से करते रहे,लीलाएँ घनश्याम।
नहीं हुई तब ही कभी,सत्य,न्याय की शाम

नटनागर का रूप है,सचमुच में कुछ ख़ास।
बचपन से देते रहे,सबको वे आभास॥

माखन खाकर बन गए,गिरिधर तो ख़ुद चोर।
यह लीला रोचक रही,नाचा मन का मोर॥

पराभूत कर कालिया,सिद्ध किया देवत्व।
कंस मारकर कर दिया,रक्षित न्यायिक तत्व॥

रास रचैया कृष्ण का,होता है यशगान।
घर-घर में जो बन गए,सचमुच मंगलगान॥

अर्जुन का बनकर सखा,मार दिया अन्याय।
समरभूमि में कर दिया,सचमुच चोखा न्याय॥

हरने सबके मोह को,दिया युद्ध में ज्ञान।
गीता के दिव्यत्व से,दूर भगा अज्ञान॥

लीला करके कृष्ण ने,बाँटा था उत्साह।
नंद-यशोदा लाल ने,रच डाला था वाह॥

कृष्ण धर्म के सार हैं,ईश्वर के अवतार।
हे भगवन हमको करो,भवसागर से पार॥

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।