सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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मेह़फिल में आप कोई इशारा न कीजिए।
बदनाम हमको ऐसे ‘ख़ुदारा न कीजिए।
इक बार का ही ज़ख़्म न भर पाया आज तक,
उल्फ़त की बात हमसे दुबारा न कीजिए।
नाज़ ओ अदा का आपकी घट जाएगा वक़ार,
हम ‘जैसे आशिक़ों ‘से किनारा न कीजिए।
हँसते ही ‘हँसते छलकें ‘न आँखों के मयकदे,
इतना ख़याल आप हमारा न कीजिए।
दरिया में आ के देखिए क्या लुत्फ़ है ह़ुज़ूर,
साहिल से कश्तियों का नज़ारा न कीजिए।
बन जाएगा ‘यह आपकी रुस्वाई का ‘सबब,
रो-रो के मेरा नाम ‘पुकारा न कीजिए।
बीनाई घट न जाए कहीं आपकी ‘फ़राज़’,
इतनी ‘किसी की राह ‘निहारा न कीजिए॥