मुम्बई (महाराष्ट्र)।
कोई भी भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती। मराठी से हिंदी में दलित साहित्य का अनुवाद पढ़ने के बाद मुझे नई जीवन-दृष्टि और शक्ति प्राप्त हुई।
दिल्ली से आई प्रमुख अतिथि, लेखिका-कवयित्री अनिता भारती ने अपनी प्रभावशाली कविताएँ सुनाते हुए यह बात कही। मौका रहा ‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर जनवादी लेखक संघ (मुम्बई) और स्वर संगम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में विरंगुला केंद्र (मीरा रोड) में बहुभाषी कवि सम्मेलन, जिसमें खचाखच भरे श्रोताओं ने आरंभ से अंत तक तन्मयता पूर्वक काव्य-साहित्य का आस्वाद लिया।
सचिव जे.आर. यादव ने बताया कि विशिष्ट अतिथि प्रो. कुसुम त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी प्रेम और भाईचारे की भाषा है, वर्चस्व की नहीं। वरिष्ठ कवि एवं शायर हृदयेश मयंक और राकेश शर्मा ने अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। राकेश शर्मा की ग़ज़ल “न हिंदी है, न उर्दू है मेरे अशआर की भाषा;मैं शायर हूँ, मेरा दिल बोलता है प्यार की भाषा” को खूब सराहा गया, जबकि हृदयेश मयंक की पंक्तियाँ “फिर कहीं शोर उठा और कहीं आग लगी, उसमें जलता हुआ मेरा घर उभर कर आया” पर तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। नैमिष राय, अनिल गौड़, भूपेंद्र मिश्र, सुनील ओवाल, पुलक चक्रवर्ती और आर.एस. आघात आदि ने हिन्दी, मराठी, उर्दू व अन्य भाषाओं में अपनी कविताएँ और शायरी प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
सभा की अध्यक्षता शैलेश सिंह ने की। संचालन जुल्मीराम सिंह यादव ने किया। आभार डॉ. मुख्तार खान ने व्यक्त किया।