नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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कोरोना का दंश गजब का,काँप रहा है जग सारा।
सुबह-शाम तक सूरज सिर पे,फिर भी लगता अँधियारा॥
हर पल काँटे से चुभते हैं,
आँखों से आँसू झरते।
सिसक-सिसक कर साँसें चलतीं,
तिल-तिल कर जीते-मरते।
नीरसता सब ओर दिखे है,बुझा-बुझा मन बेचारा,
सुबह-शाम तक सूरज सिर पे,फिर भी लगता अँधियारा…॥
जो घर में,परिवार साथ में,
स्वस्थ,सुखी,किस्मत वाले।
देख सुकूँ मिलता है दिल को,
कोई तो किस्मत वाले।
जीवन है अनमोल,अनुपम,साथ परिजनों का प्यारा,
सुबह-शाम तक सूरज सिर पे,फिर भी लगता अँधियारा…॥
जिनके परिजन बिछड़ गए हैं,
उनकी पीड़ा गहरी है।
आँसूओं से लिपट-सिमट के,
सिसकी में आ ठहरी है।
उमर काटनी मुश्किल पल-पल,जीवन व्यथित थका हारा,
सुबह-शाम तक सूरज सिर पे,फिर भी लगता अँधियारा…॥