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विरहिणी का दर्द

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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सुन्दर रूप नैना कजरारे,चमके जैसे गगन के तारे,
ऐसा रूप था विरहिणी का,आज बैठी है मन मारे।

सावन आते देखकर भी,विरहिणी नहीं मुस्काती है,
वह ताप झेलती रहती मन में,कुछ नहीं बताती है।

मन ही मन सोच रही,नहीं किसी से कुछ कहती,
विरहिणी अपने दर्द को,दिल में ही छुपाए रहती।

जब से साजन गए विदेश,छोड़ दिए हैं अपना देश,
मन ही में सोचे विरहिणी,छोड़ गया मुझे अपने देश।

मैं नहीं जान सकी पिया,दिल लेकर चले जाएंगे,
मुझको भूलकर ना जाने कैसे पियाजी रह पाएंगे।

सारी खुशियाँ लेकर गया विरहिणी को छोड़ गया,
क्यों रुठ गया है मेरा साजन,काहे नाता तोड़ गया।

जब आती ऋतु बसन्त,सभी सखी नाचती गाती है,
विरहिणी झरोखे से सखी को झाँकती रह जाती है।

तब याद साजन की आती है,मन ही मन में रोती है,
पिया को याद कर विरहिणी,सारी रात नहीं सोती है।

जब पनघट पे जाए विरहिणी,सूने कदम घाट लगे,
जब पहनी धानी चुनर विरहिणी के मन में ताप लगे।

देख सखी मन मारे बैठी विरहिणी विरह का दर्द लिए,
कहती है ‘देवन्ती’,विरहिणी के पिया अनेक दर्द दिए॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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