हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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कलकत्ता दुष्कर्म-हत्या…
एक बार फिर चीर हरण होता रहा
सब देखते रहे,
जुबान चुप रही, खामोश सब हो गए
आबरु बचाने में असमर्थ पीड़िता चिल्ला रही होगी,
कौन सुने उस की पुकार…।
उस दिन मानो उसे हो गया होगा एहसास,
दुनिया में महिलाओं की कोई नहीं सुनता पुकार
तभी तो वह तड़पती रही उस दरिंदे के लिए घाव,
मानवता मिटती जा रही, कौन सुने उसकी पुकार…।
वह दुनिया से हो गई अलविदा कह दफन हो गए सब राज,
फिर एक बेटी ‘निर्भया’ बन गई
अब कब होगा उसका इंसाफ ?
सेवा करती वह मानवता की पर,
आज मूल्यों के पतन ने उसे मिटा दिया,
कौन सुने उसकी पुकार…।
देश में गुस्सा उबल रहा उस बेटी के लिए,
सब कर रहे इंसाफ की बात
पर राजनीति का खेला कर रहा सब बर्बाद।
इल्जामों को अपनी साख बना रहे नेता,
कर रहे राजनीति, कौन सुने उसकी पुकार…॥