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क्यों खो दिए अपने…

संजय जैन ‘बीना’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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वो ऐसे आए मेरे सपनों में,
कि हम उन्हें भुला न सके
जिंदगी के दोराहे पर,
खड़े होकर उन्हें देखते रहे
आलम इस तरह का था कि,
सपने के लिए जल्दी सो जाते थे
और हसीन पलों में डूबकर,
जन्नत का आनंद लेते थे।

न उनने मुझे और न हमने,
उन्हें सामने से देखा
सोच कैसी-क्या थी,
न उन्हें पता था न हमें
पर सपनों में आना-जाना,
उनका निरंतर बना रहा
वो उस तरफ हम इस तरफ,
पर दोनों किनारे मिल रहे थे।

हवाओं के झोंकों से उनके,
आने का आभास होता था
बहते पानी की आवाज,
प्यार का संदेश देती थी
और साथ बहने को हमसे,
वो मानो कहती रहती थी
तब हम भी साथ बहकर,
एक दिन समुद्र में समा गए।

जितना जी सके उनके साथ,
उतना जीकर हम धन्य हो गए
नदी रूप में सबके काम आए,
और सागर में मिलकर खो गए
सच कहें तो अपनी खुद की,
पहचान हम दोनों खो दिए।
बस कुछ दिलों में ही जिंदा है,
और प्यार का संदेश दे रहे है॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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