हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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यह पहचान नहीं है हमारे शहर की,
क्यों बर्बाद कर रहे हो इसको
नव कोपलों की इस नई आजादी से,
हमें क्यों शर्मिंदा कर रहे हो तुम…?
यह ‘रील’, रीयल लाइफ से कोसों दूर है,
फिर क्यों अपनी शालीनता को बेकार कर रहे हो तुम ?
यह आजादी का दुरुपयोग है,
हमें क्यों शर्मिंदा कर रहे हो तुम…?
हमारा शहर हमारी पहचान है, संस्कृति है, हमारा सम्मान है
इसमें अश्लीलता व फैशन का रंग मत घोलो,
हमें क्यों शर्मिंदा कर रहे हो तुम…?
झूठी शान, झूठे ‘लाइक’ के सहारे,
तुम आधुनिकता के गुलाम मत बनो
रील या फोटो शूट से अन्तर्मन की सुंदरता नहीं दिखती है,
दिखावटी प्रदर्शन से सब खराब होगा।
इस आधुनिक प्रदूषण से सबको,
क्यों शर्मिंदा क्यों रहे हो तुम…??