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क्रिया-प्रतिक्रिया

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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हो क्रिया की भांति कर्म
प्रतिक्रिया प्रतिशोध-सा मर्म,
वाद-विवाद-संवाद नहीं
मौन मालिक प्रतिनिधि धर्म।

प्रतिक्रिया द्वार प्रलोभन का
मरीचिका लोचन खोवन-सा,
क्रिया घर्षण लोह पे जंक
स्वयं तपना होने को स्वर्ण।

आतिथ्य बन, कर सत्कार
मौन-ध्यान, प्रार्थना स्थान,
मन-मस्तिष्क प्रतिक्रिया मुक्त
आत्म देव क्रिया आहावान।

एक आकाश होना होगा
अधूरा पूर्ण करना होगा,
हँस कर, रोकर हो जा रिक्त
गर देव आतिथ्य बनना होगा।

अर्थ प्रार्थना-न्योता, आहावान,
हो आसन उसका
प्रतिक्रिया प्रथम रिक्त स्थान।
शून्य-सी हो देह देव को,
आत्म ओढ़ तू मंदिर-सा वर्ण॥

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