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रामदीन

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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‘अजी सुनते हो, घर में आटा खत्म हो गया है। शाम को लौटते समय बाजार से आटा लेते आना। खाना तभी बनेगा, जब आटा आ जाएगा।’ रजनी ने काम पर जाते हुए रामदीन से कहा।
‘ठीक है आज मालिक से पगार भी लेनी है। तुम अपना ख्याल रखना। मैं शाम को सारा सामान ले आऊंगा। और हाँ, बच्चों से बोल देना आज तो घर में पकवान बनाकर खाएंगे। हमारी शादी की सालगिरह है, भूल गईं हो क्या ?’ रामदीन ने इतराते हुए कहा। रजनी मुस्कराते हुए अपने काम में लग गई।
रामदीन कोयला फैक्ट्री में काम करता था। वह बहुत ही गरीब था। उसके २ बच्चे थे-सोनू और चिंकी। बेचारा कड़ी धूप में बहुत मेहनत करता था, तब कहीं जाकर दो वक्त की रोटी का जुगाड हो पाता था।
रामदीन फैक्ट्री में पहुंच कर अपने काम में लग गया था। फैक्ट्री मालिक थोड़ा खड़ूस एवं सख्तमिजाज व्यक्ति था। उन्हें सिर्फ काम से मतलब था। अन्य बातों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। कहने लगा,-‘रामदीन आज २:घंटे ओवर टाइम करना है। देश में बिजली संकट गहराया है इसलिए कोयले की बहुत ज्यादा मांग हो रही है। सभी मजदूरों को ओवर टाइम करना ही पड़ेगा।’
ये सुनकर रामदीन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। सोचने लगा आज तो घर में आटा नहीं है और मुझे घर भी जल्दी जाना है। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि कैसे मालिक से कहूं। घर में पैसे भी नहीं है। पगार भी लेनी है।
बड़ी हिम्मत जुटा कर झिझकते से रामदीन ने कहा,-‘मालिक आज मुझे… !’
‘रामदीन मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए।’ फैक्ट्री मालिक ने बीच में ही बात काटते हुए कहा।
‘तुम्हें पता है देश में कितना बड़ा बिजली संकट आया हुआ है। तुम देश की खातिर २ घंटे नहीं दे सकते। नहीं…नहीं आज मैं कुछ नहीं सुनूंगा।’ और ये कह कर फैक्ट्री मालिक चला गया।
रामदीन की आँखों में आँसू छलक आए। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसकी आँखों के सामने उसका हँसता-खेलता परिवार नजर आ रहा था। खैर! करता भी क्या! बेचारा काम पर लग गया। भयंकर गर्मी पड़ रही थी। चिलचिलाती धूप में वो पसीना-पसीना हो रहा था।
उधर बच्चे खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे। चिंकी कह रही थी -‘आज तो हम खीर बनाएंगे।’ ‘नहीं,नहीं माल पुए बनाएंगे।’ सोनू ने उसे डांटते हुए कहा।
‘अरे गर्मी में तुम क्यों झगड़ा कर रहे हो। पापा को आने तो दो।’ रजनी ने कहा।
‘मम्मी लाईट क्यों नहीं आ रही है। बहुत गर्मी लग रही है।’ सोनू ने कहा।
‘आ जाएगी बेटा। आजकल कटौती बहुत ज्यादा चल रही है, इसलिए नहीं आ रही हैं।
दोपहर की तपन बच्चों से सहन नहीं हो रही थी। रजनी बीजणी से बच्चों को हवा कर रही थी।
उधर, रामदीन का काम में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। उसकी आँखों में आँसू बह रहे थे। बार-बार सोनू और चिंकी की छवि उसके सामने आ रही थी। सोच रहा था मालिक भी ठीक कहते हैं। देश में बिजली का संकट आया हुआ है। कोयला नहीं बनेगा तो बिजली कहाँ से आएगी, लेकिन बीवी- और बच्चों से जो वादा करके आया हूँ, उसका क्या! और घर में आटा भी नहीं है। रामदीन का दर्द से सिर फटा जा रहा था।
भीषण गर्मी में काम करते-करते अचानक रामदीन चक्कर खाकर गिर पड़ा। एकदम से फैक्ट्री में खलबली मच गई। अरे! रामदीन को क्या हो गया। अभी तो अच्छा-भला काम कर रहा था। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। गोपाल भागा-भागा मालिक के पास गया।
गोपाल, रामदीन का परम मित्र था। रामदीन ने काम पर आते ही सारी बात गोपाल को बता दी थी, लेकिन मालिक के गुस्से के आगे कोई नहीं बोलता था।
‘मालिक रामदीन बेहोश हो गया।’ गोपाल ने कहा।
‘क्यों क्या हुआ ? अभी तो अच्छा-भला था।’
‘पता नहीं मालिक, पर आज कुछ टेंशन में लग रहा था। कह रहा था आज घर में आटा नहीं है। आज वो बच्चों को पकवान बनाकर खिलाने का वादा भी करके आया था। और मालिक मुझसे कह रहा था आज उसकी शादी की सालगिरह भी है।’ गोपाल ने एक ही साँस में सारी बात कह डाली।
फैक्ट्री मालिक तुरंत रामदीन के पास पहुंचा। शुक्र है कि रामदीन को मालिक के पहुंचने से पहले ही होश आ गया।
“क्या बात है रामदीन ! आज तुम्हारा काम में बिल्कुल मन नहीं है।” फैक्ट्री मालिक ने कहा।
‘थोड़ी देर आराम करो और फिर काम में लग जाओ समझे।’ ये कह कर फैक्ट्री मालिक अपने कैबिन में चला गया। सभी मजदूर अपने-अपने काम में लग गए। रामदीन उदास था, बेचारा फिर से काम में लग गया।
शाम को ५ बजने वाले थे। फैक्ट्री मालिक अपने केबिन में बैठे-बैठे रामदीन के बारे में सोच रहे थे। आज उसकी शादी की सालगिरह है, गोपाल ने कहा था।
“मालिक आज मुझे…” अरे! हाँ रामदीन कुछ कह रहा था मुझसे। मैंने उसकी पूरी बात नहीं सुनी थी। फैक्ट्री मालिक का हृदय परिवर्तन हो गया था। उन्होंने चपरासी को बुलाया और एक सूची पकड़ाते हुए कुछ सामान लाने को कहा।
शाम के ५ बज गए थे। चपरासी सामान ले आया था। फैक्ट्री मालिक सीधा रामदीन के पास गया और कहने लगा।-‘ रामदीन आज घर नहीं जाना है क्या ? बच्चों को पकवान बनाकर भी तो खिलाना है।’
‘मालिक…।’ रामदीन ने पैर पकड़ लिए।
‘बस कर पगले, अब उठो, और ये कुछ मिठाईयां है बच्चों को मेरी तरफ से खिलाना। और हाँ सुना है आज तुम्हारी शादी की सालगिरह भी है ?’
‘जी मालिक।’ रामदीन ने शरमाते हुए कहा।
अरे! तो जाओ और खुशियाँ मनाओ।’ फैक्ट्री मालिक ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘जी मालिक’ कह कर रामदीन खुशी-खुशी सीधा घर पहुंच जाता है। पापा को देखकर बच्चे खुशी के मारे झूम उठे।
रामदीन ने कहा,-‘रजनी मैं आज बहुत खुश हूँ। मालिक ने हमारी शादी की सालगिरह पर मुबारकबाद दी है और मिठाईयां भेजी है। मैं उन्हें गलत समझता था, लेकिन वो बहुत अच्छे इंसान हैं। देश के बारे में सोचने वाले, एक सच्चे देशभक्त।’ रजनी अपने पति रामदीन के चेहरे को एकटक देखे जा रही थी और मन्द-मन्द मुस्करा रही थी।

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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