हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:१ २ २-१ २ २-१ २ २-१ २ २…
खता हो गई क्या भला ज़िन्दगी से।
सजा क्यों नहीं हर सिला ज़िन्दग़ी से।
खता हो गई क्या…
मनाते सभी जश्न आगाज़ पर ही,
मगर गम बने रहते अन्जाम तक भी।
न अन्जाम लाते खुशी ज़िन्दगी में,
भला किस तरह का गिला ज़िन्दगी से।
खता हो गई क्या भला…॥
मिले हर किसी को सभी रिश्ते-नाते,
मगर साथ तो वक्त के पल निभाते।
न देखा किसी ने, न जाना किसी ने,
जुड़ा वक्त का हर सिला ज़िन्दगी से।
खता हो गई क्या भला…॥
बहारें नजारे सभी कुछ दिखे हैं,
मगर साॅंस धड़कन नहीं दिख सके हैं।
बने इल्म पर ये न सजते किसी से,
बना क्यूं न ये सिलसिला ज़िन्दगी से।
खता हो गई क्या भला…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।