कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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शांति से सहन कर, अहं का दमन कर,
बेकार तकरार में, वक्त न गवांइए।
आलस्य को तज कर, खड़ा रह डट कर,
विपरीत धार में भी, आगे बढ़ जाइए।
चल तू संभल कर, पग रख थम कर,
लोगों से उलझ कर, ऊर्जा न गवांइए।
राग-द्वेष त्याग कर, प्रेम का संचार कर,
अनर्गल प्रलाप से, खुद को बचाइए।
अन्तस् का ध्यान कर, स्वयं का निशान कर,
चिकनी-चुपड़ी बातों में, होश न गवांइए।
शक्ति का संचार कर, स्वयं को तैयार कर,
अमृत पाने के लिए, हाथ तो बढ़ाइए।
स्व की जयगान कर, ज्ञान दीप्तिमान कर,
चारों दिशा में जी आप, ज्ञान को फैलाइए।
चोटी पे पहुँच कर, आसमान को छू कर,
अपने पीछे वालों का, हौसला बढ़ाइए॥