कुल पृष्ठ दर्शन : 5

You are currently viewing गर्मी की छुट्टियाँ खुशियाँ अपार

गर्मी की छुट्टियाँ खुशियाँ अपार

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************

गर्मी की छुट्टी पड़ी, खुशियाँ बाल अपार।
बंद शैक्षणिक संस्था, गर्मी मास प्रहार॥

तपिश ग्रीष्म जलती धरा, बहती तप्त बयार।
कठिन हुआ गमनागमन, जला रहा लू धार॥

विद्यालय आना कठिन, हुआ असंभव छात्र।
हुई छुट्टियाँ ग्रीष्म की, बचते लू से गात्र॥

देशाटन की चाहतें, चढ़ीं बाल परिवार।
खिली मौज़ सन्तान का, भ्रमण देश उपहार॥

मातु-पिता निश्चय किये, देशाटन स्थान।
पर्वतीय तीर्थस्थली, किया भ्रमण प्रस्थान॥

खिली उमंगें बालपन, गर्मी का अवकाश।
अनुपम आनंदित हृदय, पूर्ण भ्रमण की आश॥

देशाटन अनुभूति मन, गिरि तरु कानन सिन्धु।
सप्तसरित प्रवहित धरा, दर्शन भारत बन्धु॥

प्रमुदित गाँव समाज भी, देख शहरिया लोग।
मिट्टी अपनापन लसित, गर्मी छुट्टी योग॥

दर्शनीय जगहों वतन, सैलानी सैलाब।
संसाधन बहु जीविका, बढ़ाती लाजवाब॥

देशाटन की मस्तियाँ, खुशी ग्रीष्म अवकाश।
बाल वृद्ध यौवन सभी, रहे प्रतीक्षा आश॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥