बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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जो प्रकट नहीं करता,
वह ही प्रकट है।
जो मुस्कुराता जाता है
उसके दुखों को,
कोई नहीं जानता।
उसकी भी उम्मीदों को
नील समंदर चाहिए,
उसकी भी आकांक्षाओं का
गहरा सागर है ।
वह दुखों को भी
रखता है सफ़र में,
जहां कभी खुशियों से भरा
समंदर भी था।
वहाँ आज दीमक खाए
पेड़ लटके हैं,
बहते काठ के टुकड़े हैं
नदी के समानांतर पर।
मुझे घुटन होती है,
जब देखती हूँ।
छिटकते हुए, छितराते हुए,
भटकते हुए दृश्यों को॥