कुल पृष्ठ दर्शन : 13

गाँव की साँझ

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
***************************************

इतवार को गाँव जाना हुआ, शाम को सोचा कि खेत पर चक्कर लगा लिया जाए। सांझ ढल रही थी, अस्ताचल का सिंदुरी सूरज आरक्त होकर पश्चिम की देहरी छू रहा था। मेड़ पर खड़े होकर मैंने देखा कि १०-१२ मयूरों की टोली अपने मस्तीभरे अंदाज में कटे हुए गेहूँ के खेत मे टहल रही है। उनकी ठुमकन भरी चाल, लहराती गर्दन के मोहक अंदाज देख मस्त होकर देर तक उन्हें देखता रहा। उनमें कुछ मोर थे, तो बहुत सारी मादा थीं। गेहूँ के दाने तलाशते हुए अपने मनमोहक भ्रमण से सारी सृष्टि को अपने अंदाज से उनका सजाना वाकई बेमिसाल था। गेहूँ बीनते हुए बीच में ही अपने पंखों को वे इस कदर हिलाते, मानो सारी सृष्टि डोल रही है। सूरज की विदा लेती किरनें उनके पंखों पर फैलकर इंद्रधनुष बिखेर रही थी।
जैसे ही मैं थोड़ा आगे खिसका, सचेत होकर सारी गर्दन टोह लेने के अंदाज में उपर उठ खड़ी हुई और इतनी तेजी से पड़ोस वाले अनार के खेत में घुसकर अदृश्य हुई, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उनकी चपल, चंचल चाल, सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति के बारे में सोच ही रहा था कि ऊपर आकाश में श्वेत बगुलों की लंबी- लंबी कतारें। ओह ! जाने कैसा सौंदर्य है यह। स्वर्ण भरे आकाश में आयी धवल बगुलों की बाढ़ से समां विलक्षण चैतन्य से भर आया। ढलती शाम में कैसे सबको अपने आशियाने की चाहत जाग उठती है! बहुत देर तक बगुलों की कतारें गुजरती रहीं, शाम ढलती रही। अब हमें भी अपने घर लौटना चाहिए, सोचकर जैसे ही मैं वापसी की राह मुड़ा, नदी के किनारे एक पंछियो की टोली इस पेड़ से उस पेड़ पर फुदकती समूह स्वर में गा रही थी। जाने कौन-सा गाना था वो, लेकिन बहुत सुरीला था। तन्मय होकर बहुत देर तक मैं चिड़ियों के उस झुंड को ताकते हुए उनके गाने का अर्थ खोजता रहा। अब अंधेरा सघन हो चला था और कदम अपने-आप आशियाने की ओर पड़ने लगे थे।
मदहोश चाँद तले रात को जब विश्राम के लिए लेटा तो मयूरों की टोली अपने पंख फैलाकर देर रात तक मन में थिरकती रही, बगुलों की धवलता मैलापन मिटाती रही तो गाने वाले पंछी ऐसे महसूस हो रहे थे, जैसे माँ लोरियाँ गा रही हो।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला- नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’
(हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह),
‘पंचवटी के राम’ (गद्य और पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’
(काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘रामदर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज एवं नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।