हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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तोतली-सी आवाज को साध-साध कर,
जिसने, वीणा की सी सुरीली सुरमई बनाया
अंधकार भरे इस मानुष जीवन को नित,
निरंतर सुरम्य उजाले के पथ पर चलाया।
गुरु ज्ञान गुण सागर तुम ही वह हो,
शून्य से मुझको समाधि तक पहुँचाया
अज्ञान-अंधेरा अपने प्रकाश से,
मेरे भीतर का हे गुरुवर! तुमने भगाया।
‘अ’ से ‘ज्ञ’ तक सिखाकर सब-कुछ,
मुझे एक काबिल इंसान बनाया
क्षमा-क्षमा हो गुरुवर प्यारे, गर,
मैंने हो भूल से कभी दिल दुखाया।
आप हो खुश तो हरि मना लूं,
रूठने से रूठे खुदा-सरमाया।
आज है पर्व ‘गुरु पूर्णिमा’ का,
मैं पावन चरण कमल तेरे आया॥