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गुरु बिन ज्ञान नहीं भैया

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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क्या अकेला अर्जुन कर सकता ?
लक्ष्य भेद अचूक बिन द्रोणाचार्य का
क्या अर्जुन बन पाता निष्णात ?
धुरंधर धनुर्धर बिन आचार्य का
कितना भी कोई वीर धुरंधर हो,
बस श्री गुरु का मार्गदर्शन चाहिए
चाहे अर्जुन हो या हो एकलव्य,
श्री गुरु का जरूर अनुसरण चाहिए।

एकलव्य जो वीर धनुर्धर,
अंगूठा देने पर भी बना धुरंधर
धनुर्विद्या का सम्राट वीर,
अर्जुन से भी बड़ा बना पुरंदर
गुरु द्रोणाचार्य का बनाकर,
मिट्टी का पुतला बना सिकंदर
गुरु की प्रतिमा लेकर जेहन में,
सीखता रहा विद्या निरंतर।

गुरु को स्थापित कर प्रतिमा में,
लेता रहा आशीर्वाद गुरु का
करके ध्यान निरंतर गुरु का,
अंतस में बनता गया श्रीगुरु का
देख एकलव्य की गुरुभक्ति,
आशीष मिला भर-भर श्री गुरु का
वीर श्रेष्ठ धनुर्धर साबित हुआ,
एकलव्य प्रसाद मिला श्री गुरु का।

गुरु बिन ज्ञान संभव ही नहीं,
चाहे साधन कोई अपना लो
गूगल, इंटरनेट या शिक्षा आभासी,
या चाहे ए.आई. अपना लो
हाड़-माँस का गुरु चाहिए फिर,
चाहे तो खुला आँगन अपना लो
भावनाओं-आत्मा का खेल है शिक्षा,
जीता-जागता गुरु अपना लो।

गुरु है तमस हटाने वाला,
गुरु है धुंध मिटाने वाला
गुरु है राह दिखाने वाला,
अंतस में प्रभात जगाने वाला
गुरु रूह से रूह का नाता,
गुरु अंतःप्रकाश जगाता।
गुरु बिन ज्ञान नहीं रे भैया,
गुरु ही अपना असली त्राता॥

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।