दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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शूरवीर भारतीय सेना (विजय दिवस विशेष)….
नींद तिरंगे में बसती है,
सीमा पर जो सोते नहीं
हम चैन की नींद ले पाते हैं,
क्योंकि जागते हैं वो हर घड़ी।
कभी बर्फ पर आशियाना,
कभी तपता हुआ रेगिस्तान
हर मौसम और हर हाल में,
अडिग रहा उनका स्वाभिमान।
माँ की ममता घर का आँगन,
सपने सुहाने स्नेह का बंधन
सब-कुछ पीछे छोड़ चले वो,
पहला धर्म कर्म राष्ट्र वंदन।
धमाका बम का या बंदूक की गोली,
भय इनको लगता ही नहीं
देशभक्ति का जुनून इन्हें,
कदम कभी लड़खड़ाए नहीं।
सुरक्षित निश्चिंत हर चेहरे पर,
इनके बलिदानों की चमक दिखाई दे
इतिहास के पन्नों पर आज भी,
जिनका गौरव गान सुनाई दे।
जो लौट आए रणभूमि से,
भारत का वो गौरव बने
कुछ ओढ़े माटी की चूनर,
तिरंगे में लिपट गए।
आज और आने वाली पीढ़ी को,
सेना का ऋण चुकाना है
एकजुटता अपनी दिखाकर,
देश को आगे बढ़ाना है।
वीर जवानों का नमन यही,
उनका सम्मान अटल रहे।
हर भारतवासी के दिल में,
सेना का गौरव प्रज्वलित रहे॥