सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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दीप जलें, मन महके…
लिपे-पुते घर के अंगना में
नन्हें बच्चों के झुंड चहके,
दीपावली की स्याह रात में
दीप जले और मन महके।
रंगोली के चटक रंगों से
सबके घर के द्वार सजे,
गेंदा, गुलाब की खुशबू से
मन महके और दीप जले।
छूटी फुलझड़ियाँ गलियों में
चकरी झर-झर घूम रही,
दरवाजे की ओट से बहुएं
घुँघटा ओढ़े झांक रही।
ऐसे खिले लजाते मुखड़े
बूढ़ी हुई दादियाँ चहके।
दीवाली की रात घर-घर,
दीप जले और मन महके॥
