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चिंतन शिविर: मुद्रा और मत की चिंता

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कांग्रेस का चिंतन-शिविर आयोजित किया जा रहा है। सबसे आश्चर्य तो यह जानकर हुआ कि इस जमावड़े का नाम चिंतन-शिविर रखा गया है। हमारे नेता और चिंतन! इन दो शब्दों की यह जोड़ी तो बिल्कुल बेमेल है। भला, नेताओं का चिंतन से क्या लेना-देना ? छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों की बात जाने दें, देश की अखिल भारतीय पार्टियों के नेताओं में चिंतनशील नेता कितने है? क्या उन्होंने गांधी, नेहरु, जयप्रकाश, लोहिया, नरेंद्रदेव की तरह कभी कोई ग्रंथ लिखा है ? अरे लिखना तो दूर, वे बताएंगे कि ऐसे चिंतनशील ग्रंथों को उन्होंने पढ़ा तक नहीं है। अरे भाई, वे इन किताबों में माथा फोड़ें या अपनी राजनीति करें ? उन्हें नोट और मत उधेड़ने से फुरसत मिले तो वे चिंतन करें। वे चिंतन शिविर नहीं, चिंता-शिविर आयोजित कर रहे हैं। उन्हें चिंता है कि उनके नोट और मत खिसकते जा रहे हैं। इस चिंता को खत्म करना ही इस शिविर का लक्ष्य है। ऐसा नहीं है कि यह चिंतन-शिविर पहली बार हो रहा है। इसके पहले भी चिंतन-शिविर हो चुके हैं। उनकी चिंता भी यही रही कि नोट और मत का झांझ कैसे बजता रहे ? किसी भी राजनीतिक दल की ताकत बनती है २ तत्वों से! उसके पास नीति और नेतृत्व होना चाहिए। कांग्रेस के पास इन दोनों का अभाव है। नेतृत्व का महत्व हर देश की राजनीति में बहुत ज्यादा होता है। भारत-जैसे देश में तो इसका महत्व सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा मूर्तिपूजक देश है। मूर्ति चाहे बेजान पत्थर की ही हो लेकिन भक्तों को सम्मोहित करने के लिए वह काफी होती है। आज कांग्रेस में ऐसी कोई मूर्ति नहीं है। अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ ने अपने-अपने प्रांत में अच्छा काम कर दिखाया है लेकिन क्या कांग्रेसी इनमें से किसी को भी अपना अध्यक्ष बना सकते हैं ? कांग्रेस की देखा-देखी हमारी सभी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन गई हैं। उक्त सुयोग्य नेताओं की हैसियत भी सिर्फ प्रबंधकों से ज्यादा नहीं है। यदि कांग्रेस दल में राष्ट्रीय, प्रांतीय अध्यक्षों और पदाधिकारियों का चुनाव गुप्त मतदान से हो तो इस महान दल को खत्म होने से बचाया जा सकता है, लेकिन सिर्फ कोई नया नेता क्या क्या कर लेगा ? जब तक उसके पास कोई नई वैकल्पिक नीति, कोई सामायिक विचारधारा और कोई प्रभावी रणनीति नहीं होगी तो वह भी मरे साँप को ही पीटता रहेगा। वह सिर्फ सरकार पर छींटाकशी करता रहेगा, जिस पर कोई ध्यान नहीं देगा। आजकल कांग्रेस, जो माँ-बेटा पार्टी बनी हुई है, वह यही कर रही है। कांग्रेस के नेता अगर चिंतनशील होते तो देश में शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार को लेकर कोई क्रांतिकारी योजना पेश करते और करोड़ों लोगों को अपने साथ जोड़ लेते, लेकिन हमारी सभी पार्टियां चिंतनहीन हो चुकी है। चुनाव जीतने के लिए वे भाड़े के रणनीतिकारों की शरण में चली जाती हैं। सत्तारूढ़ होने पर उनके नेता अपने नौकरशाहों की नौकरी करते रहते हैं। उनके इशारों पर नाचते हैं और सत्तामुक्त होने पर उन्हें बस एक ही चिंता सताती रहती है कि उन्हें येन- केन प्रकारेण कैसे भी फिर से सत्ता मिल जाए।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

 

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