संजय वर्मा ‘दृष्टि’
मनावर(मध्यप्रदेश)
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गलियारे सूने से लगते,
खिड़कियाँ हमेशा रहती बंद
कोयल भी वृक्ष पर नहीं कूकती,
कबूतर के कतरे पंख की तरह
हो गई है प्रेम चिट्ठियाँ।
बदल गए बरसों में चेहरे,
बगीचे बन गए कॉलोनी
छत पर अब कोई नहीं जाता,
सुखाने आलू की चिप्स
और उड़ाने पतंग।
दूसरों के गाजे-बाजे देखने,
दौड़कर कोई नहीं आता
न मिलने के लिए कोई मंदिर जाता,
अब कोई दिखता नहीं
जिससे आँखें मिलाई जाए।
पसंद के गुलाब से खुशबू,
जैसे हो गई रफूचक्कर
जिसे बालों में लगाती थी कभी,
प्रेम की मेहंदी का रंग भी उड़-सा गया
ढूढ़ता हूँ प्रेम की कविताओं में,
कल्पनाओं में
छवियों में तुम्हारा चेहरा,
तुम नदी और मैं बादल-सा था कभी।
अब तुम घुमड़ते बादल को निहारती होगी,
और मैं अविरल बहती नदी को
शायद प्रेम को नदी से पूज सकूँ,
और पा लूँ
नदी कल-कल को फिर से,
अपने पास
अपने आस-पास॥
परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL