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जमीं पर जिन्दगी

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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(रचना शिल्प:रदीफ-मिले,काफिया-पर, आकर,जाकर इत्यादि; २१२ २१२ २१२)

जिन्दगी तू अगर चाह ले,तो न क्या फिर जमीं में मिले।
बस खुदी रख मुकम्मल यहां,फिर सभी कुछ यहीं पर मिले।

हैंं खुदा जग मेंं सबसे बड़े,जिन्दगी की खुदी भी बड़ी,
दिखते वो ना कभी भी यहां,पर खुदी से खुद आकर मिले।

हैं बहुत यादगारें यहां,हर खुदाई भी जिनमें दिखे,
फिर कहें किस बिनां पर सभी,वो तो जन्नत में जाकर मिले।

किसको जन्नत,जहन्नुम,दिखे,दो जहां लोग कहते मगर,
एक ही है जहां,इक खुदा,जिन्दगी तो यहीं पर मिले।

हैं खुदा भी यहीं दैत्य भी,पर न पहचान होती यहां,
रूप हैं अनगिनत सब यहीं,फिर कहां और जाकर मिलेll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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