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नेह नीर का प्यासा पंछी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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(रचनाशिल्प:मात्रा भार १६+१४=३०)

नेह नीर का प्यासा पंछी
आँगन-आँगन डोल रहा,
मिले चोंच भर नेह कहीं से
अपने बंधन खोल रहा।

रहा भटकता दर-दर पर मैं
अपने मन की प्यास लिए,
प्यास कहीं तो बुझ जाएगी
मन में ये विश्वास लिए।
आकुल मन में आस लगाए
सबका हृदय टटोल रहा।
नेह नीर का प्यासा पंछी,
आँगन-आँगन डोल रहा…ll

तड़प रहा कितनी मुद्दत से
प्यार किसी का पाने को,
मिला नहीं अब तक कोई भी
मुझको गले लगा ले जो।
घूम-घूम कर इधर-उधर मैं,
सबके मन को तोल रहाl
नेह नयन का प्यासा पंछी,
आँगन-आँगन डोल रहा…ll

जाऊँ कहाँ किसे बोलूँ मैं
अपना मुझे बना लो तुम,
देकर स्नेह हृदय का अपने
मुझको वहीं बसा लो तुम।
अपने दिल में मुझे छुपा लो,
मीठी वाणी बोल रहा।
नेह नीर का प्यासा पंछी,
आँगन-आँगन डोल रहा…ll

मिला स्नेह का स्त्रोत मुझे भी
मुझको गले लगाया है,
मुझे लगा कर के सीने से
अमृत पान कराया है।
हृदय हुआ है तृप्त आज मधु,
रस वाणी में घोल रहा।
नेह नीर का प्यासा पंछी,
आँगन-आँगन डोल रहा…ll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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